गढ़भूमि गढ़देश : गढ़वाली कविता


गढ़भूमि गढ़देश




छोड्याली गढ़भूमि गढ़देश।
  बशीग्या सभी परदेश।।
जे धुला माटा म तिन ग्वाया लायी ।
हिटणु क्या सीखी ,त फंडू छोडी ग्याई ।
जो फुंगड्यों कु खेक त्वेन बचपन बिताई ।
सयाणु क्या वाई , त फंडू छोड़ी ग्याई ।
तों बुढेन्दी आख्यों की तोड़ीयाली ख्वेस । 




बशीग्या सभी परदेश।।
अपड़ी बोली भाषा बिषरोणा ।
बिराणी भाषा सीखी गर्व चितोणा ।।
बिराणु की छुयों थें , टक लेक स्वीणा ।
अपणो का ब्वान म , त मूक रे गेणा ।।
तो अपड़ो का बीच , बिरणो की मैश।
बशीग्या सभी परदेश।।


गाढ़ गदनयो कु , पाणी बौड़ाई ।
डाम क बाना , कुड़ी फुंगड़ी डुबाई ।।
बिदेशो म गेन सी, बिजलयो की लेन।
पहाड़ क मनखी , त  देखदी रेन ।।
बिराणु की डेली म , करणा छ ऐश ।
बशीग्या सभी परदेश।।





पित्रों की कुडियों म लगी गेन ताला।
मंदिरों म लगी गेन मकड़ो क जाला।।
नरसिंग घण्ड्याल न नागराज ।
ढ़ोल दमों न गाजा न बाज ।।
अब कखन होलु देंणु खोळी को गणेश।।
बशीग्या सभी परदेश।।
छोडयाली गढ़भूमि गढ़देश।
  बशीग्या सभी परदेश।।



   😊 कवि : चन्दन रावत
   😊 टेक्निकल सपोर्ट : आनंद सिंह रावत 




Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

उत्तराखण्ड के स्थानीय वाद्य संगीत-यंत्र By Anand Singh Rawat

गुंजन डंगवाल