गुंजन डंगवाल
गुंजन डंगवाल ⇦
आज के समय में जहाँ लोग अपनी - अपनी भाषा एवं संस्कृति को भूलते जा रहें हैं । लेकिन कुछ युवा हमारे उत्तराखंड में ऐसे भी हैं , जो इन सब चीजों को सवारने की कोशिश कर रहें हैं । अक्सर आप लोगों ने देखा होगा कि लोग आपने गाँव से नौकरी की तलाश में शहर आते हैं , पर वो लोग हमेशा - हमेशा के लिए वही बस जाते हैं।
गढ़वाली संगीत बहुत वर्षों से लिखा और गाया जा रहा हैं। हमारी उत्तराखंड की संस्कृति की जब - जब अती है तो हम लोग सबसे पहले उत्तराखंडी संगीत की बात करते हैं।
विलुप्त हो रही हमारी संस्कृतिक धरोहर और संगती को दुबारा याद दिला रहें हैं उत्तराखंड के युवा। युवा पीढ़ी की तो बात ही अलग हैं। ये लोग गढ़वाली संगीत के क्षेत्र में बहुत ही ज्यादा अच्छा प्रदर्शन कर रहें हैं। चलिए युवाओं के बहाने से ही सही लोग हमारी पारम्परिक संगीत को बचाने के लिए और सही मुकाम तक पहुँचने के लिए बहुत ही ज्यादा मेहनत कर रहें हैं।
विलुप्त हो रही हमारी संस्कृतिक धरोहर और संगती को दुबारा याद दिला रहें हैं उत्तराखंड के युवा। युवा पीढ़ी की तो बात ही अलग हैं। ये लोग गढ़वाली संगीत के क्षेत्र में बहुत ही ज्यादा अच्छा प्रदर्शन कर रहें हैं। चलिए युवाओं के बहाने से ही सही लोग हमारी पारम्परिक संगीत को बचाने के लिए और सही मुकाम तक पहुँचने के लिए बहुत ही ज्यादा मेहनत कर रहें हैं।
उत्तराखंडी संगीत को एक बदलती दिशा को एक बहतारीन अंदाज में पेश कर रहें हैं एक बहतारीन म्यूजिक डायरेक्टर एवं गयाक गुंजन डंगवाल। गुंजन डंगवाल एक गढ़वाली छोरा हैं। ये अखोरी घनसली के रहने वाले हैं। ये अपने स्वर एवं संगीत दोनों से लोगों को दीवाना बना रहें हैं। गुंजन के हर संगीत में आप को उनका हुनर और जलवा दिखाई देगा।
ये एक मेहनती युवा हैं। ये हमारे पहाड़ी संगीत को बचाने के लिये "एेडी चोंटी का जोर" लगा रहें हैं। ये तेईस साल का युवा किसी भी समान्या गाने को बहतारीन बनाने में माहिर हैं। इस युवा ने हमें बहुत सरे अच्छे गाने दिये है जैसे : "चैता की चैत्वाल" गुंजन के हर गीत में कोई न कोई प्रेरणा मिलती है और कुछ ना कुछ सीख मिलती हैं। आनंद - फानंद में गुंजन का एक बहुत ही अच्छा गीत आया था : "सम्भ्लि जा मयारा गौं" जिससे हमें बहुत अच्छी सीख मिलती हैं।
" बाईचांस " गाने से शुरूआत करने वाले गुंजन आज बहुत ही अच्छे मुकाम में पहुंच गये हैं।
बचपन में अपने स्कूल से शुरूआत करी अपनें मित्रो के साथ : मनीषा , रजनी राणा , नताशा शाह । फिर धीरे - धीरे इनकी इन चीजों में रूचि बढ़ने लगी। फिर ये अपने गुरु सुमन्त पंवार जी से गायकी की सीख लेने लगे। लेकिन इनकी दिलचस्पी गायकी के बजाये संगीत बनाने में बढ़ी। फिर धीरे - धीरे काम सीखने लगे। और दस साल की महानत के बाद अपना जलवा दिखा रहें हैं। ये अपनी तरह के शायद पूरे उत्तराखंड में एक ही होंगे जिन्हें आप कही भी भुलाओ , ये एक साउंड कार्ड , माईक, लैपटॉप, मिडी , के साथ निकल जाते हैं।
ARTICLE BY : ANAND SINGH RAWAT
BLOG HOLDER : ANAND SINGH RAWAT
PLEASE DO NOT COPY THE MATTER !!
Nice
ReplyDeleteThank You SIR
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