प्रलय


प्रलय : यह कविता १६ जून २०१३ को उत्तराखण्ड में आई आपदा पर आधारित है 




देख तेरे दर पर प्रभु कैसी आफत आई है , आसमां से बरसती ये कैसी कयामत छाई है , मौत का तांडव मचा है शोक है,मातम छाया है , अपनों से बिछड़े अपने कैसी ये तेरी माया है ।।

प्रकृति ने ना जाने कैसा ये खेल रचा , दर पर तेरे आकर भी तेरा भक्त ना बचा , लाशें ही लाशें बिछीं हैं वीरान तेरा धाम पड़ा , ऊफान पर क्यों ये गंगा और थरथराती ये धरा ।।

भक्तों का जहाँ सैलाब था आज लाशों का अम्बार है , सूना आज क्यों ये प्रांगण क्यों तू आज लाचार है, मन्दिर तेरा खंडहर हुआ क्यों सन्नाटा तेरी घाटी में , भक्त से क्यों विभक्त हुआ क्यों त्राहिमाम तेरी माटी में ।।

धाम तेरा बहा ले गई गंगा अपनी लहरों में , भक्ति आस्था दब गई ढहे अधढहे मलबों में , गूँजित था जो तेरे नाम से उल्लास बारहमास था , क्यों फिर ये काल बरसा जहाँ तेरा ही वास था ।।

करूणामयी माँ गंगा ने कैसा कहर ढाया है , कि देवों की भूमि में देव न बच पाया है , मौत का तांडव मचा है शोक है मातम छाया है , अपनों से बिछड़े अपने कैसी ये तेरी माया है ।।


Written BY : Sudhan Singh Kaintura

Uploaded By : Anand Singh Rawat

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